Sakat Chauth Vrat Katha : संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए

Sakat Chauth Vrat Katha

Sakat Chauth Vrat Katha सकट चौथ हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस व्रत को तिल चौथ, संकष्टी चतुर्थी, माघी गणेश चतुर्थी आदि नामों से भी जाना जाता है। इस व्रत को मुख्य रूप से महिलाएं अपने पुत्रों की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए करती हैं।

कथा:Sakat Chauth Vrat Katha

पहली कथा:

Sakat Chauth Vrat Katha

एक बार माता पार्वती स्नान करने के लिए गईं और द्वार पर अपने पुत्र गणपति जी को खड़ा कर दिया। उन्होंने आदेश दिया कि कोई अंदर न आए, जब तक वो स्नान करके बाहर न आएं। कुछ ही समय बाद भगवान शिव वहां आए और अंदर जाने लगे। लेकिन गणपति जी ने, अपनी माता के वचन का पालन करते हुए, उन्हें रोक दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणपति जी का सिर धड़ से अलग कर दिया।

माता पार्वती स्नान करके बाहर आईं और अपने पुत्र को इस अवस्था में देखकर विलाप करने लगीं। उन्होंने भगवान शिव से आग्रह किया कि वो गणपति को जीवित करें। शिव जी ने प्रसन्न होकर एक हाथी के बच्चे का सिर गणपति जी के धड़ से जोड़ दिया, जिससे उन्हें दूसरा जीवन मिला। तभी से गणपति जी को गजानन कहा जाने लगा।

इस कथा से हमें सीख मिलती है कि माता-पिता के प्रति आज्ञा मानना कितना महत्वपूर्ण है। साथ ही, गणपति जी का बलिदान भी हमें बताता है कि सच्चे विश्वास और भक्ति के सामने कोई संकट टिक नहीं सकता।

sakat chauth vrat katha

दूसरी कथा:

Sakat Chauth Vrat Katha

एक नगर में एक साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे। उनके सात बेटे थे, लेकिन सभी विदेश चले गए थे। साहूकारनी बहुत धर्मनिष्ठ थीं और सकट चौथ का व्रत निष्ठापूर्वक करती थीं। एक दिन उन्हें सपना आया कि उनकी बहू, तिल चौथ का व्रत तोड़ने के कारण बड़ी मुसीबत में हैं। सुबह होते ही साहूकारनी ने जल्दी से गणपति जी का पूजन किया और तिलकुट का भोग लगाया। इसके बाद उन्होंने तिल और घी का दीपक जलाया और कथा सुनी।

उसी समय उनकी विदेश में रहने वाली बहू एक भयंकर जंगल में फंस गई। वहां एक राक्षस उस पर हमला करने वाला ही था, जब अचानक तिल के तेल का दिया जलते हुए प्रकट हुआ। गणपति जी की कृपा से राक्षस पीछे हट गया और बहू सुरक्षित रूप से घर लौट आई।

इस कथा से हमें पता चलता है कि गणपति जी सच्ची श्रद्धा और भक्ति करने वालों की मनोकामनाएं जरूर पूरी करते हैं। उनके व्रत को निष्ठापूर्वक करने से न केवल संतान की रक्षा होती है, बल्कि जीवन में आने वाले किसी भी संकट का भी आसानी से निवारण हो जाता है।

निष्कर्ष:

सकट चौथ का व्रत माताओं के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को निष्ठापूर्वक करने से संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन की प्राप्ति होती है। इसलिए, सभी माताएं इस व्रत को निष्ठापूर्वक करें और अपने परिवार को सुख-समृद्धि प्रदान करें।

जय गणपति!

अतिरिक्त जानकारी:

  1. सकट चौथ के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और साफ-सुथरे कपड़े पहनती हैं।
  2. इसके बाद वे गणपति जी की मूर्ति या तस्वीर को एक चौकी पर स्थापित करती हैं और विधि-विधान से पूजा करती हैं।
  3. पूजा में गणपति जी को तिल, गुड़, मोदक, लड्डू आदि का भोग लगाया जाता है।
  4. इसके बाद महिलाएं कथा सुनती हैं और व्रत का पारण करती हैं।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Exit mobile version